उभरे मगर देखो
सुरीली तान में वह बाँसुरी
हर बार गाती है
सुरभि कब रुक सकी बोलो
हवा कब ठहरना जाने
कली काँटों में रहकर भी
हमेशा मुस्कराती है
जिसे हम दर्द का पर्वत
दुखों की बाढ़ कहते हैं
वही तो ज़िंदगी है
बंदगी है और साथी है...!
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बहुत सुन्दर!
बहुत उम्दा सकारात्मक रचना!! वाह!
बहुत बढियां ,अन्तिम लायीं को थोड़ा और मीटर में लायें !
चन्द्र कुमार जी कविता के बोल सुंदर हैं ..बांसुरी, नाम सुनते और बोलते ही मन मैं एक भाव उभर आता है ..न जाने छेद कितने देह परउभरे मगर देखोसुरीली तान में वह बाँसुरी हर बार गाती है...badhai
बहुत सुंदर भाव लिये है आप की कविता.धन्यवाद
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5 comments:
बहुत सुन्दर!
बहुत उम्दा सकारात्मक रचना!! वाह!
बहुत बढियां ,अन्तिम लायीं को थोड़ा और मीटर में लायें !
चन्द्र कुमार जी कविता के बोल सुंदर हैं ..बांसुरी, नाम सुनते और बोलते ही मन मैं एक भाव उभर आता है ..न जाने छेद कितने देह पर
उभरे मगर देखो
सुरीली तान में वह बाँसुरी
हर बार गाती है...badhai
बहुत सुंदर भाव लिये है आप की कविता.
धन्यवाद
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