Sunday, January 11, 2009

मेरे सपनों में आते हैं...!

महफ़िल में हँसी-ठहाकों के

मंज़र अक़्सर मिलते हैं पर

सूने घर में रोने वाले

मेरे सपनों में आते हैं

अपनी ही दुनिया में खोए

खुदगर्ज़ मिले अनगिन लेकिन

खो बैठे जो अपनी दुनिया

वो मुझको रोज़ बुलाते हैं

इस पार रुकूँ कैसे मैं मन !

उस पार जो जीवन ठहरा है

मैं उनकी गति बन जाऊँ जो

थककर पथ पर रुक जाते हैं...!

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10 comments:

Dr. Amar Jyoti said...

'मैं उनकी गति बन जाऊं …'
बहुत सुन्दर और प्रेरक।

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर विचार, सुंदर कविता!

sanjay vyas said...

hriday tal ko chhoone wala likha aapne.

संगीता पुरी said...

अच्‍छे विचारों युक्‍त अच्‍छी कविता।

Harshvardhan said...

bhav gahre hai
well, this is nice post

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर.

अमिताभ मीत said...

बहुत बढ़िया है भाई.

नीरज गोस्वामी said...

आप की कलम से निकली एक और असाधारण रचना...वाह...
नीरज

राज भाटिय़ा said...

वाह कया भाव है, बहुत सुंदर.
धन्यवाद

vandana gupta said...

bahut bhavbhini prastuti