Thursday, January 15, 2009

कटें मत...डटे रहें !

कटे रहे तो यही ज़माना

तुम्हें हाशिए में छोड़ेगा

डटे रहे तो बेशक एक दिन

वह अपना भी रुख़ मोड़ेगा

यहाँ कोई परवाह किसी की

कभी न शिद्दत से करता है

घटे रहे तुम ख़ुद जीवन से

कहो ज़माना क्यों जोड़ेगा ?

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11 comments:

विधुल्लता said...

..कटे रहे तो यही ज़माना
तुम्हें हाशिए में छोड़ेगा.....आपकी गजल का ओज मन -मोहता hai पूरी गजल के मकते भाव भरें हैं ..कोई समझे तब ना,

महेन्द्र मिश्र said...

घटे रहे तुम ख़ुद जीवन से
कहो ज़माना क्यों जोड़ेगा ?
बहुत बढ़िया रचना जो हकीकत बयानी कर रही है .

Dr. Amar Jyoti said...

बहुत ख़ूब।

Unknown said...

डटे रहे तो बेशक एक दिन

वह अपना भी रुख़ मोड़ेगा

bahut khub...

संगीता पुरी said...

आपकी रचनाएं छोटी पर गजब के भाव लिए रहती हैं।

विवेक सिंह said...

बहुत बढ़िया रचना !

Udan Tashtari said...

बहुत सही बात..उम्दा.

राज भाटिय़ा said...

कटे रहे तो यही ज़माना
तुम्हें हाशिए में छोड़ेगा.....
डॉ. चन्द्रकुमार जैन जी बहुत ही सुंदर बात कह दी आप ने इस छोटी सी कविता मै.
धन्यवाद

नीरज गोस्वामी said...

आदरणीय जैन साहेब जीवन दर्शन कोई आप के इन छोटे छोटे शब्दों से सीखे....कमाल लिखते हैं आप..वाह.
नीरज

दिनेशराय द्विवेदी said...

बिहारी के दोहे याद आ रहे हैं।

रंजना said...

बहुत सही. बहुत ही सुंदर बात.