आस आस्कर की पूरी थी
पूर्ण हुई यह कला-साधना
भारत की झुग्गी बस्ती के
अँधियारे को कम न आँकना
उधर मुस्कराहट पिंकी की
सुनो सुनाती नई कहानी
बुझी हुई उम्मीदों में भी
छुपी रौशनी बड़ी सयानी
अल्ला रख्खा 'रहमानों' से
भारत रहे सहज 'गुलज़ार'
यही कामना हम करते हैं
मिले आस्कर सौ-सौ बार !
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2 comments:
हम भी इस कामना में आपके साथ शामिल हैं.
अल्ला रख्खा 'रहमानों' से
भारत रहे सहज 'गुलज़ार'
यही कामना हम करते हैं
मिले आस्कर सौ-सौ बार !
आमीन
नीरज
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