खेली जो कल गई
वो होली बीत गई
खेली जो जानी है
अब भी बाकी है
रंग चढ़े एक पल
दूजे में उतर गए
बात और है कोई
निशानी बाकी है
मतलब तो तब है
जब होली पे लब पर
बोली रंगों की
बरबस आबाद रहे
जिसके सुर में सहज
झूम जाए तन-मन
राग-रंग से परे
रवानी बाकी है
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2 comments:
अद्भुत शब्दों से सजी आप की ये रचना अनुपम है...नमन आपकी लेखनी को...
नीरज
मतलब तो तब है
जब होली पे लब पर
बोली रंगों की
बरबस आबाद रहे
जिसके सुर में सहज
झूम जाए तन-मन
राग-रंग से परे
रवानी बाकी है ....
अनुपम रचना....!!
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