Thursday, March 12, 2009

रंग चढ़े एक पल...दूजे में उतर गए !


खेली जो कल गई

वो होली बीत गई

खेली जो जानी है

अब भी बाकी है

रंग चढ़े एक पल

दूजे में उतर गए

बात और है कोई

निशानी बाकी है

मतलब तो तब है

जब होली पे लब पर

बोली रंगों की

बरबस आबाद रहे

जिसके सुर में सहज

झूम जाए तन-मन

राग-रंग से परे

रवानी बाकी है

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2 comments:

नीरज गोस्वामी said...

अद्भुत शब्दों से सजी आप की ये रचना अनुपम है...नमन आपकी लेखनी को...
नीरज

हरकीरत ' हीर' said...

मतलब तो तब है
जब होली पे लब पर
बोली रंगों की
बरबस आबाद रहे
जिसके सुर में सहज
झूम जाए तन-मन
राग-रंग से परे
रवानी बाकी है ....

अनुपम रचना....!!