
शूलों पर ही सत्य का संधान होता है।
दीनों की आह सुन जो सेवा का व्रत ले,
धरा पर वही सच्चा इंसान होता है।।
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जीवन के लिए धन है, धन के लिए जीवन नहीं,
तन के लिए कपड़ा है, कपड़े के लिए तन नहीं।
साधन और साध्य का अन्तर समझना ज़रूरी है,
चेतन के लिए शरीर है, शरीर के लिए चेतन नहीं।।
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मुनि मणिप्रभ सागर जी द्वारा रचित...साभार.