ज़मीर काँप तो जाता है आप कुछ भी कहें वो हो गुनाह से पहले कि हो गुनाह के बाद गवाह चाह रहे थे वो मेरी बेगुनाही का ज़बां से कह न सका कुछ 'ख़ुदा गवाह' के बाद ============================== शायर - कृष्ण बिहारी 'नूर'
वाह जैन साहेब वाह...नूर साहेब मेरे बहुत पसंदीदा शायर हैं...उनकी रचना पढ़वा कर दिन बना दिया आपने...इनदिनों आप का लिखा पढने को नहीं मिल रहा न ही आप कहीं नज़र आ रहे हैं...उम्मीद करता हूँ की आप सकुशल होंगे... नीरज
4 comments:
वाह जैन साहेब वाह...नूर साहेब मेरे बहुत पसंदीदा शायर हैं...उनकी रचना पढ़वा कर दिन बना दिया आपने...इनदिनों आप का लिखा पढने को नहीं मिल रहा न ही आप कहीं नज़र आ रहे हैं...उम्मीद करता हूँ की आप सकुशल होंगे...
नीरज
बहुत ही खूबसूरत शेर प्रस्तुत किया है आपने....
अब समझ में आया कि आप इतना अच्छा क्यों लिखते हैं .
आप अच्छा पढ़्ते हैं तो अच्छा लिखते हैं .
काफ़ी है साहब .... काफ़ी है .... बहुत है .... कमाल है ... बस कमाल है !
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