तुम सोच रहे हो बस,बादल की उड़ानों तक,
मेरी तो निगाहें हैं, सूरज के ठिकानों तक।
हर वक़्त फिज़ाओं में, महसूस करोगे तुम,
मैं प्यार की खूशबू हूँ, महकूंगा ज़मानों तक।।
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श्री आलोक श्रीवास्तव का मुक्तक...साभार.
Saturday, May 2, 2009
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4 comments:
khubsurat muktak.
बहुत बढिया.
KHUBSURAT ANDAAJ ME LIKHI GAYEE YE MUKTAK SHAANDAAR HAI ... BAHOT BADHIYA LAGAA...
SAADAR
ARSH
बहुत ख़ूब!
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