कष्टों में ही मानवीयता का ज्ञान होता है,
शूलों पर ही सत्य का संधान होता है।
दीनों की आह सुन जो सेवा का व्रत ले,
धरा पर वही सच्चा इंसान होता है।।
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जीवन के लिए धन है, धन के लिए जीवन नहीं,
तन के लिए कपड़ा है, कपड़े के लिए तन नहीं।
साधन और साध्य का अन्तर समझना ज़रूरी है,
चेतन के लिए शरीर है, शरीर के लिए चेतन नहीं।।
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मुनि मणिप्रभ सागर जी द्वारा रचित...साभार.
Monday, May 25, 2009
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5 comments:
वा भाई.. मुनियों की वाणी भी ब्लॉग पर आना चाहिए.अच्छा है.
... सुन्दर प्रस्तुति ।
बहुत सुन्दर..आजकल कम लिखा जा रहा है भाई?
जीवन का मर्म समझाती पंक्तियाँ....वाह...
नीरज
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ!!
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