Monday, July 13, 2009

शेर...लाज़वाब !

मंज़िल-ए-ग़म से गुज़रना तो है आसां इक़बाल
इश्क है नाम ख़ुद अपने से गुज़र जाने का
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इक़बाल
लबों पे उसके कोई बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे खपा नहीं होती
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मुनव्वर राणा
सपना झरना नींद का,जागी आँखें प्यास
खाना,खोना,खोजना साँसों का इतिहास
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निदा फ़ाजली

9 comments:

mehek said...

bahut khub

निर्मला कपिला said...

लाजवाब

Drmanojgautammanu said...

अति सुन्दर रचना । वास्तव में उसके लबों पे कभी भी बद दुआ नहीं होती ।

लता 'हया' said...

वाकई ग़ज़ब के शेर...पढ़वाने का शुक्रिया...
हया

ओम आर्य said...

bahut hi sundar .........kyaa kahe aap jobhi likhate wo mujhe lagata hai wah sirf sip ke moti hote hai..

Udan Tashtari said...

चुनिंदा शेर लाये हैं..

राणा जी वाले में टंकण त्रुटि है शायद:

खपा = खफा!

रंजन (Ranjan) said...

वाह वाह!!!

राज भाटिय़ा said...

लबों पे उसके कोई बददुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे खपा नहीं होती
बहुत सुंदर.
धन्यवाद

Unknown said...
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