Thursday, July 16, 2009

चरण धूलि तल में.

मेरा मस्तक अपनी चरण धूलि तल में झुका दे
प्रभू ! मेरे समस्त अहंकार को
आँखों के पानी में डुबा दे !
अपने झूठे महत्त्व की रक्षा करते हुए
मैं केवल अपनी लघुता दिखाता हूँ
अपने ही को घेरे मैं
घूमता-घूमता प्रतिपल मरता हूँ
प्रभू मेरे समस्त अहंकार को
आँखों के पानी में डुबा दे !
मात्र अपने निजी कार्यों से ही
मैं अपने को प्रचारित न करुँ !
तू अपनी इच्छा मेरे जीवन के
माध्यम से पूरी कर !
मैं तुझसे चरम शांति की भीख माँगता हूँ
प्राणों में तेरी परम कांति हो !
मुझे ओट देता मेरे
ह्रदय कमल में तू खड़ा रह !
प्रभू मेरा समस्त अहंकार मेरे
आँखों के पानी में डुबा दे !
==========================
गुरुदेव की 'गीतांजलि' से सश्रद्ध.

5 comments:

ओम आर्य said...

bahut hi sundar rachana ....

शरद कोकास said...

आपके सौजन्य से गीतांजली की यह रचना मिली धन्यवाद

mehek said...

मुझे ओट देता मेरे
ह्रदय कमल में तू खड़ा रह !
प्रभू मेरा समस्त अहंकार मेरे
आँखों के पानी में डुबा दे !
bahut sunder

anil said...

बेहतरीन रचना सुन्दर !

सागर said...

प्रभू ! मेरे समस्त अहंकार को
आँखों के पानी में डुबा दे !

ab iske aage aur kya kehne ko bach jata hai.... main swang natmastak hoon.