मेरा मस्तक अपनी चरण धूलि तल में झुका दे
प्रभू ! मेरे समस्त अहंकार को
आँखों के पानी में डुबा दे !
अपने झूठे महत्त्व की रक्षा करते हुए
मैं केवल अपनी लघुता दिखाता हूँ
अपने ही को घेरे मैं
घूमता-घूमता प्रतिपल मरता हूँ
प्रभू मेरे समस्त अहंकार को
आँखों के पानी में डुबा दे !
मात्र अपने निजी कार्यों से ही
मैं अपने को प्रचारित न करुँ !
तू अपनी इच्छा मेरे जीवन के
माध्यम से पूरी कर !
मैं तुझसे चरम शांति की भीख माँगता हूँ
प्राणों में तेरी परम कांति हो !
मुझे ओट देता मेरे
ह्रदय कमल में तू खड़ा रह !
प्रभू मेरा समस्त अहंकार मेरे
आँखों के पानी में डुबा दे !
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गुरुदेव की 'गीतांजलि' से सश्रद्ध.
Thursday, July 16, 2009
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5 comments:
bahut hi sundar rachana ....
आपके सौजन्य से गीतांजली की यह रचना मिली धन्यवाद
मुझे ओट देता मेरे
ह्रदय कमल में तू खड़ा रह !
प्रभू मेरा समस्त अहंकार मेरे
आँखों के पानी में डुबा दे !
bahut sunder
बेहतरीन रचना सुन्दर !
प्रभू ! मेरे समस्त अहंकार को
आँखों के पानी में डुबा दे !
ab iske aage aur kya kehne ko bach jata hai.... main swang natmastak hoon.
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