अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
तेरी मर्जी के मुताबिक नज़र आयें कैसे
घर सजाने का तसव्वुर तो बहुत बाद का है
पहले ये तय हो कि इस घर को बचाएँ कैसे
कहकहा आँख का बरताव बदल देता है
हँसने वाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे
कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे
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वसीम बरेलवी साहब की ग़ज़ल साभार.
Thursday, July 23, 2009
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7 comments:
डॉ.चन्द्रकुमारजी जैन
बडी ही सुन्दर रचना।
आभार
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
SELECTION & COLLECTION
गज़ब .. गज़ब !! क्या शेर हैं .. लाजवाब !!
घर सजाने का तसव्वुर तो बहुत बाद का है
पहले ये तय हो कि इस घर को बचाएँ कैसे
WASHIM SAHIB KI GAZALON KE KYA KAHANE AUR KHAS KAR IS GAZAL KA YE SHE'R BEHAD UMDAA BAHOT BAHOT BADHAAYEE AUR AABHAAR...
ARSH
sundar ......bahut sundar.......atisundar
वसीम साहब की इस गज़ल को जब भी मै जगजीत सिन्ह की आवाज़ मे सुनता हूँ बहुत अच्छी लगती है
कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे
बहुत सुंदर रचना !!
बहुत जबरदस्त!! बस!!!!!
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