Sunday, September 20, 2009

हम वो नहीं हैं जिन्हें रास्ता चलाता है...!


समन्दरों में मुआफिक हवा चलाता है

जहाज ख़ुद नहीं चलते ख़ुदा चलाता है

ये जा के मील के पत्थर पे कोई लिख आए

वो हम नहीं हैं जिन्हें रास्ता चलाता है

वो पाँच वक़्त नज़र आता है नमाज़ों में

मगर सुना है कि शब को जुआ चलाता है

ये लोग पाँव नहीं जेहन से अपाहिज हैं

उधर चलेंगे जिधर रहनुमा चलाता है

हम अपने बूढ़े चिरागों पे ख़ूब इतराए

और उसको भूल गए जो हवा चलाता है

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राहत इन्दौरी साहब की एक और ग़ज़ल साभार

4 comments:

Udan Tashtari said...

अच्छा लगा पढ़कर.

संगीता पुरी said...

सुंदर रचना !!

रंजना said...

waah ...bahut sundar...prastuti hetu aabhar.

राज भाटिय़ा said...

बहुत अच्छा लगा ,
धन्यवाद