अच्छा मनुष्य अच्छा मनुष्य
जरा उस मनुष्य को देखो
जो अच्छा है इसलिए रोता है
और जो रोता है इसलिए अच्छा है
रोता हुआ मनुष्य अच्छा है
या अच्छा मनुष्य रोता हुआ है
एक सड़क पर मैंने देखे दो लोग
एक अच्छा था और रोता था
एक रोता था और अच्छा था
उन्हें इसका एहसास भी नहीं था
और अब तो दोनों के चेहरे
एक दूसरे में प्रवेश कर गए थे
उलझते-झगड़ते गडमड होते हुए।
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श्री मंगलेश डबराल की कविता ....हरिभूमि के
रविवारीय अंक १४ मार्च २०१० को प्रकाशित...साभार
Saturday, March 13, 2010
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8 comments:
'जो अच्छा है इसलिए रोता है
और जो रोता है इसलिए अच्छा है'
इन दो पंक्तियों में सवाल भी है जवाब भी....
श्री मंगलेश डबराल की कविता बहुत ही गहन भाव लिए है.
बहुत ही अच्छी कविता पढवाई आप ने.
आभार आप का.
jahan me bahut der tak ye baat kaundhati rahegi... us raste par khade insaan ki aur parashpar khud ke liye... ye sawaal aam hai magar khas hai ke ... kaun kya hai ... achha hai to rota hai ya rota hai isliye ke achha hai ...
dabraal sahab ko badhaayee is vishay keliye...
dino baad aapke blog par aana hua ...
badhaayee aur shubhkamanaayen...
arsh
जो अच्छा है इसलिए रोता है
और जो रोता है इसलिए अच्छा है'
और बहुत देर इन पँक्तियों मे मन उलझा रहा। धन्यवाद इस सुन्दर कवितक़ को पढवाने के लिये।
सुंदर कविता।
चित्र भी अर्थपूर्ण है।
आभार डबराल जी की बेहतरीन रचना पढ़वाने के लिए.
बहुत सुन्दर जैन साहब ....
मंगलेश जी की इस कविता के लिये धन्य वाद । और कहाँ रहते हैं डॉक्टर आजकल?
गहन भाव युक्त सार्थक सुन्दर रचना...
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