Saturday, March 13, 2010

परस्पर....!

अच्छा मनुष्य अच्छा मनुष्य
जरा उस मनुष्य को देखो
जो अच्छा है इसलिए रोता है
और जो रोता है इसलिए अच्छा है
रोता हुआ मनुष्य अच्छा है
या अच्छा मनुष्य रोता हुआ है
एक सड़क पर मैंने देखे दो लोग
एक अच्छा था और रोता था
एक रोता था और अच्छा था
उन्हें इसका एहसास भी नहीं था
और अब तो दोनों के चेहरे
एक दूसरे में प्रवेश कर गए थे
उलझते-झगड़ते गडमड होते हुए।
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श्री मंगलेश डबराल की कविता ....हरिभूमि के
रविवारीय अंक १४ मार्च २०१० को प्रकाशित...साभार

8 comments:

Alpana Verma said...

'जो अच्छा है इसलिए रोता है
और जो रोता है इसलिए अच्छा है'

इन दो पंक्तियों में सवाल भी है जवाब भी....
श्री मंगलेश डबराल की कविता बहुत ही गहन भाव लिए है.
बहुत ही अच्छी कविता पढवाई आप ने.
आभार आप का.

"अर्श" said...

jahan me bahut der tak ye baat kaundhati rahegi... us raste par khade insaan ki aur parashpar khud ke liye... ye sawaal aam hai magar khas hai ke ... kaun kya hai ... achha hai to rota hai ya rota hai isliye ke achha hai ...
dabraal sahab ko badhaayee is vishay keliye...
dino baad aapke blog par aana hua ...
badhaayee aur shubhkamanaayen...

arsh

निर्मला कपिला said...

जो अच्छा है इसलिए रोता है
और जो रोता है इसलिए अच्छा है'
और बहुत देर इन पँक्तियों मे मन उलझा रहा। धन्यवाद इस सुन्दर कवितक़ को पढवाने के लिये।

अजित वडनेरकर said...

सुंदर कविता।
चित्र भी अर्थपूर्ण है।

Udan Tashtari said...

आभार डबराल जी की बेहतरीन रचना पढ़वाने के लिए.

अमिताभ मीत said...

बहुत सुन्दर जैन साहब ....

शरद कोकास said...

मंगलेश जी की इस कविता के लिये धन्य वाद । और कहाँ रहते हैं डॉक्टर आजकल?

रंजना said...

गहन भाव युक्त सार्थक सुन्दर रचना...