क़त्ल करने या कराने पे खबर बनती है
अस्मतें लुटने, लुटाने पे खबर बनती है
कोई पूछेगा नहीं लिख लो किताबें कितनी
अब किताबों को जलाने पे खबर बनती है
नाचने वाले बहुत मिलते हैं इस दुनिया में
अब तो दुनिया को नचाने पे खबर बनती है
बात ईमां की करोगे तो रहोगे गुमनाम
आज तो जेल में जाने पे खबर बनती है
कुछ नहीं होगा बसाओगे जो उजड़े घर को
आग बस्ती में लगाने पे खबर बनती है
भूख से रोता है बच्चा तो उसे रोने दे
दूध पत्थर को पिलाने से खबर बनती है
कितना नादां है अनिल उसको ये मालूम नहीं
आग पानी में लगाने पे खबर बनती है
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डॉ.अनिल कुमार जैन की रचना...
नई दुनिया २१ मार्च २०१० से साभार.
Sunday, March 21, 2010
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1 comment:
बहुत बढ़िया है जैन साहब .... शुक्रिया इसे पढवाने का.
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