Saturday, April 3, 2010

बहती रहे नदी.....!

पेड़ों को
सींचते रहना
पानी से
ताकि बची रहे
हरियाली
धरती की।

चिड़ियों को
डालते रहना दाना
ताकि बचा रहे
संगीत
हवाओं में।

ह्रदय में
उगने देना
छंद करुणा के
ताकि बची रहे
नमी
तुम्हारी आँखों की।

शिशुओं को
सुनाते रहना लोरी
ताकि बचे रहें
ख़्वाब आँखों के पन्नों पर।

भूखे को
खिलाते रहना रोटी
ताकि बना रहे
सामंजस्य
भूख और रोटी के बीच।

प्यासों को
पिलाते रहना पानी
ताकि बहती रहे
नदी
तुम्हारे भीतर की।

और तभी तो
बची रहेगी कविता
सबके जीवन में।
=============================
डॉ.पुष्पारानी गर्ग की रचना साभार प्रस्तुत.

4 comments:

अमिताभ मीत said...

बहुत सुन्दर. शुक्रिया इसे बांटने का.

श्यामल सुमन said...

ह्रदय में
उगने देना
छंद करुणा के
ताकि बची रहे
नमी
तुम्हारी आँखों की।


सुन्दर भाव की पंक्तियाँ।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Ashok Pandey said...

सही बात है। प्रकृति का ताना-बाना बचा रहे तभी जीवन में कविता भी बची रह सकती है। बहुत ही सुंदर कविता। आभार।

रंजना said...

प्रेरणादायी बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर रचना....

पढवाने के लिए आभार...