Tuesday, April 8, 2008

ग़ज़ल हो गई ....!

आँखें हुईं सजल कि ग़ज़ल हो गई समझो

आहें हुईं विरल कि ग़ज़ल हो गई समझो

सुनकर करुण पुकार मदद के लिए बढ़ीं

बाहें हुईं सबल कि ग़ज़ल हो गई समझो

3 comments:

अमिताभ मीत said...

क्या बात है साहब. वाह. आज यहाँ भी एक ग़ज़ल हो गई समझो.

Alpana Verma said...

beautiful lines

राज भाटिय़ा said...

चन्दर जी आप की लेखनी सच मे सुन्दर लिखती हे .अति सुन्दर