Friday, May 2, 2008

न डरना ग़म से तुम.


कभी हँसना, कभी रोना
ये तो बस आम बातें हैं
न डरना ग़म से तुम
ये गम बड़े ही काम आते हैं
कभी जब वक्त का दरिया
लगे तूफ़ान से लड़ने
तो गम के अश्क ही
कश्ती को यारों थाम लाते हैं.

6 comments:

Udan Tashtari said...

ये गम बड़े ही कम काम आते हैं

--बहुत बढ़िया रचना है.

mehek said...

gum ke ashq hi kashti tham kete hai,wah bahut hi badhiya.

दिनेशराय द्विवेदी said...

विचारणीय रचना!

Shiv said...

बहुत खूबसूरत रचना. बहुत बढ़िया..

समयचक्र said...

वाह क्या बात है बहुत बढ़िया

राकेश जैन said...

bahut hi marmik rachna.