Friday, August 22, 2008

मुमकिन है....!


गगन के मुक्त ख़्वाबों का

धरा से प्यार मुमकिन है

न दुनिया हो मुक़म्मल पर

यहाँ घर-बार मुमकिन है

कि जब तक आँख में पानी

हृदय में आग जीवित है

अंधेरे में उजाले का

खुले दरबार मुमकिन है

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5 comments:

pallavi trivedi said...

कि जब तक आँख में पानी

हृदय में आग जीवित है

अंधेरे में उजाले का

खुले दरबार मुमकिन है

bahut badhiya...kam shabdon mein badi baat .

Dr. Chandra Kumar Jain said...

पल्लवी जी,
समय निकालकर आपने
यहाँ अपनी शुभकामना दी
और मंतव्य भी...आभार
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Abhishek Ojha said...

प्रेरणा भरी आशावादी कविता ! बहूत अच्छी.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

प्रिय अभिषेक जी
धन्यवाद और शुभकामनाएँ
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन

राजीव तनेजा said...

सीधे...सरल शब्दों में सच्ची बात