कैसा भी हो दौर मगर रंगीन नज़ारा पाया है
मैंने अपने जीने का दिलचस्प सहारा पाया है
वक़्त के तूफानों से जब भी नाव मेरी टकराई है
थाम लिया हिम्मत से मैंने और किनारा पाया है
चेहरे पर ग़म के साए थे जैसे दर्द में डूबा चाँद
फिर भी उनकी आँखों में उम्मीद का तारा पाया है
मेरी नज़रों ने नज़रों पर एक नज़र जब भी की है
नज़र-नज़र में सच कहता हूँ और नज़ारा पाया है
घिरा अंधेरों से तब छलके मेरे नयन ज़रूर मगर
उजली-उजली आँखों का हर ख़्वाब दोबारा पाया है
नहीं रोशनी रूठा करती है राहों में 'चन्द्र' कभी
जलने वाले हर दीपक ने कुछ-न-कुछ तो पाया है
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मैंने अपने जीने का दिलचस्प सहारा पाया है
वक़्त के तूफानों से जब भी नाव मेरी टकराई है
थाम लिया हिम्मत से मैंने और किनारा पाया है
चेहरे पर ग़म के साए थे जैसे दर्द में डूबा चाँद
फिर भी उनकी आँखों में उम्मीद का तारा पाया है
मेरी नज़रों ने नज़रों पर एक नज़र जब भी की है
नज़र-नज़र में सच कहता हूँ और नज़ारा पाया है
घिरा अंधेरों से तब छलके मेरे नयन ज़रूर मगर
उजली-उजली आँखों का हर ख़्वाब दोबारा पाया है
नहीं रोशनी रूठा करती है राहों में 'चन्द्र' कभी
जलने वाले हर दीपक ने कुछ-न-कुछ तो पाया है
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13 comments:
Jalnewale deepak ne kuchh na kuchh to paya hai.... Kya line hai. poori rachna utkrist star ki.
बेहतरीन भाव व प्रतीक हैं।
घिरा अंधेरों से तब छलके मेरे नयन ज़रूर मगर
उजली-उजली आँखों का हर ख़्वाब दोबारा पाया है
बहुत खूब ...पंक्तियाँ लगी यह
नहीं रोशनी रूठा करती है राहों में 'चन्द्र' कभी
जलने वाले हर दीपक ने कुछ-न-कुछ तो पाया है
bas yehi kaafii hai bhai ...
wah docsaab wah,bahut badhiya
bahut khoob.......
घिरा अंधेरों से तब छलके मेरे नयन ज़रूर मगर
उजली-उजली आँखों का हर ख़्वाब दोबारा पाया है
नहीं रोशनी रूठा करती है राहों में 'चन्द्र' कभी
जलने वाले हर दीपक ने कुछ-न-कुछ तो पाया है
बहुत अच्छे . बधाई
वाह वाह वाह.बहुत ही सुंदर लाजवाब लिखा है आपने.हर शब्द और भाव सुंदर कबीले तारीफ़ हैं.
वक़्त के तूफानों से जब भी नाव मेरी टकराई है
थाम लिया हिम्मत से मैंने और किनारा पाया है
बहुत सुंदर!
wah aapki ye ghazal behad pasand aayi. sundar sahaj aur pravahmay !
अनमोल !
अति सुन्दर
धन्यवाद
आप सब का यह स्नेह-सरोकार
सृजन की वास्तविक विभूति है
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
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