Tuesday, November 25, 2008

महावृक्ष बन गया बीज...!

महावृक्ष बन गया बीज

कर भू को सकल समर्पण !

बिन्दु बन गया सिन्धु मिटाके

अहंभाव का तर्पण !!

रज कण ने खोया अपने को

तब धरती कहलाया !

विरल समझ पाते अर्पण का

गहन बहुत है दर्शन !!

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4 comments:

Anil Pusadkar said...

बहुत गहरी बात कही आपने डाक्साब्।

दिनेशराय द्विवेदी said...

गहरी और सुंदर रचना है। एक सुझाव है, आप की रचनाएँ छोटी होती हैं। यदि इन का फोन्ट साइज ब़ड़ा कर दें तो सुंदर लगेगा। पढ़ने में भी आसानी होगी।

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर ओर गहरी सोच लिये आप की कविता.
धन्यवाद सुंदर कविता के लिये

Abhishek Ojha said...

गागर में सागर.