जीना ही दूभर हो जाए ।
ज़हर-ज़हर रह जाए अमृत,
पीना ही दूभर हो जाए ।।
चार अगर दे सकते हो तुम,
पाँच मांगती नहीं ज़िंदगी ।
इतनी मत तानों चादर फिर,
सीना ही दूभर हो जाए ।।
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अच्छी रचना।
बहुत अच्छी रचना।
इतनी मत तानों चादर फिर, सीना ही दूभर हो जाए ।। अहाहा...क्या बात है जैन साहेब...वाह...वा....नीरज
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3 comments:
अच्छी रचना।
बहुत अच्छी रचना।
इतनी मत तानों चादर फिर,
सीना ही दूभर हो जाए ।।
अहाहा...क्या बात है जैन साहेब...वाह...वा....
नीरज
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