Tuesday, December 16, 2008

इतना बोझ न रखना मन पर...!

इतना बोझ न रखना मन पर,

जीना ही दूभर हो जाए ।

ज़हर-ज़हर रह जाए अमृत,

पीना ही दूभर हो जाए ।।

चार अगर दे सकते हो तुम,

पाँच मांगती नहीं ज़िंदगी ।

इतनी मत तानों चादर फिर,

सीना ही दूभर हो जाए ।।

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3 comments:

Anil Pusadkar said...

अच्छी रचना।

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छी रचना।

नीरज गोस्वामी said...

इतनी मत तानों चादर फिर,
सीना ही दूभर हो जाए ।।
अहाहा...क्या बात है जैन साहेब...वाह...वा....
नीरज