जिन पर कोसों तक चलना है।
मत रोको उन क़दमों को,
जिनसे मंज़िल तक बढ़ना है।।
किसने चलने में साथ दिया,
और कौन राह में छूट गया।
मत सोचो इन बातों पर,
ग़र मूरत अपनी गढ़ना है।।
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मान लिया हमने .
किसने चलने में साथ दिया,और कौन राह में छूट गया। मत सोचो इन बातों पर,ग़र मूरत अपनी गढ़ना है।। बहुत अच्छी रचना । बधाई
Bilkul sahi kaha aapne.
मत रोको उन क़दमों को,जिनसे मंज़िल तक बढ़ना है।। जैन साहेब आप का जवाब नहीं...हमेशा की तरह...प्रेरक रचना...नीरज
Sir, its a wonderful poem...
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5 comments:
मान लिया हमने .
किसने चलने में साथ दिया,
और कौन राह में छूट गया।
मत सोचो इन बातों पर,
ग़र मूरत अपनी गढ़ना है।।
बहुत अच्छी रचना । बधाई
Bilkul sahi kaha aapne.
मत रोको उन क़दमों को,
जिनसे मंज़िल तक बढ़ना है।।
जैन साहेब आप का जवाब नहीं...हमेशा की तरह...प्रेरक रचना...
नीरज
Sir, its a wonderful poem...
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