Thursday, December 18, 2008

ग़र मूरत अपनी गढ़ना है...!

मत कोसो उन राहों को,

जिन पर कोसों तक चलना है।

मत रोको उन क़दमों को,

जिनसे मंज़िल तक बढ़ना है।।

किसने चलने में साथ दिया,

और कौन राह में छूट गया।

मत सोचो इन बातों पर,

ग़र मूरत अपनी गढ़ना है।।

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5 comments:

विवेक सिंह said...

मान लिया हमने .

bijnior district said...

किसने चलने में साथ दिया,

और कौन राह में छूट गया।

मत सोचो इन बातों पर,

ग़र मूरत अपनी गढ़ना है।।
बहुत अच्छी रचना । बधाई

रंजना said...

Bilkul sahi kaha aapne.

नीरज गोस्वामी said...

मत रोको उन क़दमों को,
जिनसे मंज़िल तक बढ़ना है।।
जैन साहेब आप का जवाब नहीं...हमेशा की तरह...प्रेरक रचना...
नीरज

Rajat Narula said...

Sir, its a wonderful poem...