Sunday, December 21, 2008

अपराध उनका भारी है...!

मीठे सपनों को
जीते पलों के बीच
क्यों घुल जाती है
ये कडुवाहट अजीब-सी !
आख़िर क्या चाहते हैं वो लोग
जिन्हें परवाह नहीं
किसी की चाहत की,
आख़िर क्या हासिल होगा उन्हें
बेगुनाहों का हासिल छीनकर !
इतने तंग रास्ते से
ज़ंग जीतने की
कैसी जुगत है यह कि
नाहक आक्रमण जारी है
और जो ख़ामोश हैं
अपराध उनका भारी है !
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6 comments:

Varun Kumar Jaiswal said...

खामोशी सच में भारी अपराध है |

दिनेशराय द्विवेदी said...

अच्छा व्यंग्य है।

नीरज गोस्वामी said...

और जो ख़ामोश हैं
अपराध उनका भारी है
सच्ची बात...हमेशा की तरह...लाजवाब रचना...
नीरज

Anil Pusadkar said...

बहुत बड़ी बात कह दी डाक्साब आपने। अब खामोश रहने मे डर लगेगा।

अमिताभ मीत said...

सही है साहब. अपराध हमेशा उन्हीं का रहा है, जो बोल नहीं पाते ...

शोभा said...

बहुत भावभरी अभिव्यक्ति।