Wednesday, February 4, 2009

विजयी का वह विश्व-कर्म है...!


सधे हुए हाथों से सेवा

मानवता का सहज धर्म है

कष्ट हरे जो हर हारे का

विजयी का वह विश्व-कर्म है

माना जीवन पाहन-सा है

लेकिन पावन इसे बनाएँ

पत्थर पर भी फूल खिला दें

जो भीतर से अगर नर्म हैं......!

======================