Saturday, October 11, 2008

मुसाफ़िर जाएगा कहाँ ?

सब तरफ़ है होड़
सबके बड़े सपने डोलते हैं
दौड़ में शामिल सभी हैं
वे बड़े हैं बोलते हैं
पर कहाँ जाना है
कोई भी बता मुझको न पाया
राज़ कब परवाज़ के
पंछी अचानक खोलते हैं !
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8 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया! अध्यात्म की ओर जा रहे हैं।जारी रहे।बधाई।

36solutions said...

राज कब परवाज के पंछी अचानक खोलतें हैं

आभार

शोभा said...

वाह! बहुत सुंदर लिखा है.

Satish Saxena said...

वाह वाह डॉ साहब !

श्रीकांत पाराशर said...

Bahut sundar.

राज भाटिय़ा said...

मुसाफ़िर जाएगा कहाँ ? सच मे हम पता नःई किस ओर जा रहै है,
धन्यवाद एक छोटी लेकिन सुन्दर कविता के लिये

विवेक सिंह said...

अति सुन्दर !

समीर यादव said...

दौड़ में शामिल सभी हैं
वे बड़े हैं बोलते हैं
सार्थक रचना. शुभकामनायें आपको.