सब तरफ़ है होड़
सबके बड़े सपने डोलते हैं
दौड़ में शामिल सभी हैं
वे बड़े हैं बोलते हैं
पर कहाँ जाना है
कोई भी बता मुझको न पाया
राज़ कब परवाज़ के
पंछी अचानक खोलते हैं !
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Saturday, October 11, 2008
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8 comments:
बहुत बढिया! अध्यात्म की ओर जा रहे हैं।जारी रहे।बधाई।
राज कब परवाज के पंछी अचानक खोलतें हैं
आभार
वाह! बहुत सुंदर लिखा है.
वाह वाह डॉ साहब !
Bahut sundar.
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ ? सच मे हम पता नःई किस ओर जा रहै है,
धन्यवाद एक छोटी लेकिन सुन्दर कविता के लिये
अति सुन्दर !
दौड़ में शामिल सभी हैं
वे बड़े हैं बोलते हैं
सार्थक रचना. शुभकामनायें आपको.
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