Friday, January 23, 2009

दो रातों के बीच सुबह है...!


दो रातों के बीच सुबह है

दोष न उसको देना साथी

दो सुबहों के बीच रात भी

एक ही जीवन में है आती !

आगत का स्वागत करना है

विगत क्लेश की करें विदाई,

शाम बिखरकर, सुबह जो खिलीं

कलियाँ कुछ कहतीं मुस्कातीं !

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3 comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुब, सुख दुख सभी लगे ही रहते है रात ओर सुबह की तरह.
धन्यवाद

हरकीरत ' हीर' said...

दो रातों के बीच सुबह है

दोष न उसको देना साथी

दो सुबहों के बीच रात भी

एक ही जीवन में है आती !

bhot khoob kaha Chandra kumar ji....

श्रद्धा जैन said...

ji sach kahte hain sukh dukh to lage hi hai
raat aur din ka aana jana hi jivan hai